कपास की खेती कहाँ होती है | Kapas ki Kheti Kahan hoti hai– Where Cotton is Grown in India

कपास (Cotton) केवल एक फसल नहीं है, बल्कि यह भारत के कृषि और वस्त्र उद्योग (textile industry) की रीढ़ है। यह देश की प्रमुख नकदी फसलों (cash crops) में से एक है और लाखों किसानों के लिए आय का बड़ा स्रोत है। भारत दुनिया में कपास का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक (second-largest producer of cotton) देश है।
भारत के लगभग हर राज्य में किसी न किसी स्तर पर कपास की खेती होती है, लेकिन कुछ राज्य हैं जो प्रमुख उत्पादन केंद्र हैं, जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, पंजाब और हरियाणा। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि भारत में कपास की खेती कहाँ और कैसे होती है, कौन-कौन सी किस्में (varieties) प्रयोग में लाई जाती हैं, और किन तकनीकों तथा सरकारी योजनाओं से किसानों को लाभ मिलता है।
कपास क्या है? – What is Cotton?
कपास की प्रकृति और महत्व – Nature and Importance of Cotton
कपास एक प्राकृतिक रेशा (natural fiber) है जो पौधे के फूलों से प्राप्त होता है। इसका उपयोग मुख्यतः कपड़े (clothing) बनाने, कॉटनसीड ऑयल (cottonseed oil) निकालने और पशु चारे में किया जाता है। इसके अतिरिक्त, मेडिकल गॉज (medical gauze), बैंडेज, और थ्रेड्स बनाने में भी इसका उपयोग होता है।
यह फसल उच्च मांग वाली (high-demand) है, इसलिए यह किसानों को अच्छा मुनाफा देती है। भारत जैसे देश में जहाँ वस्त्र उद्योग बड़ी मात्रा में रोजगार देता है, वहाँ कपास का महत्व और भी बढ़ जाता है।
भारत में कपास उत्पादन का इतिहास – History of Cotton Production in India
प्राचीन भारत में कपास की भूमिका – Role of Cotton in Ancient India
कपास की खेती भारत में हड़प्पा और मोहनजोदड़ो सभ्यता के समय से हो रही है। ‘कर्पास’ शब्द वेदों में भी मिलता है, जो इसके प्राचीन उपयोग को दर्शाता है। उस समय हाथ से बुने हुए वस्त्र विदेशों में निर्यात किए जाते थे।
आधुनिक भारत में कपास की क्रांति – Cotton Revolution in Modern India
ब्रिटिश शासन काल में कपास एक व्यावसायिक फसल (commercial crop) बनी। आज के समय में BT cotton और hybrid किस्मों की वजह से उत्पादन में भारी वृद्धि हुई है। भारत में 2002 के बाद BT cotton को स्वीकृति मिली और इसके बाद उत्पादन ने नई ऊँचाइयों को छुआ।
भारत के प्रमुख राज्य जहाँ कपास की खेती होती है – Major Cotton Growing States in India

गुजरात – कपास का मुख्य केंद्र – Gujarat: The Cotton Capital
गुजरात भारत का सबसे बड़ा कपास उत्पादक राज्य है। यहाँ की काली मिट्टी (black soil) और उन्नत सिंचाई प्रणाली इसे कपास की खेती के लिए आदर्श बनाती है। सौराष्ट्र, कच्छ और मध्य गुजरात के क्षेत्र कपास के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं।
महाराष्ट्र – विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्र – Maharashtra: Vidarbha and Marathwada Zones
महाराष्ट्र उत्पादन के मामले में दूसरे स्थान पर आता है। विदर्भ और मराठवाड़ा के क्षेत्र बारिश पर निर्भर (rainfed) कपास की खेती के लिए प्रसिद्ध हैं। हालांकि बारिश की अनियमितता के कारण किसानों को नुकसान भी होता है, लेकिन सरकार ने ड्रिप सिंचाई और जैविक खेती को बढ़ावा देकर इसमें सुधार लाया है।
तेलंगाना – नया उत्पादक केंद्र – Telangana: Emerging Cotton Hub
तेलंगाना ने हाल के वर्षों में कपास उत्पादन में तेजी से वृद्धि की है। वारंगल, आदिलाबाद, करीमनगर जैसे जिलों में BT cotton के माध्यम से किसानों ने अच्छी उपज ली है। ‘रायथु बंधु’ और ‘रायथु बीमा’ जैसी योजनाओं ने इस राज्य में कपास की खेती को नई दिशा दी है।
मध्य प्रदेश – मालवा और निमाड़ – Madhya Pradesh: Malwa and Nimar
मध्य प्रदेश के मालवा और निमाड़ क्षेत्र में मध्यम काली मिट्टी (medium black soil) पाई जाती है, जो कपास के लिए उपयुक्त होती है। खंडवा, खरगोन, बड़वानी जैसे जिलों में यह फसल प्रमुखता से उगाई जाती है। यहाँ के किसान नई तकनीकों को तेजी से अपनाते हैं।
पंजाब और हरियाणा – हाई-टेक खेती के साथ – Punjab & Haryana: High-Tech Cotton Cultivation
इन राज्यों में क्षेत्रफल कम होने के बावजूद उन्नत तकनीकों जैसे ड्रिप सिंचाई, जैविक कीटनाशकों (biopesticides) और लेजर भूमि समतलीकरण के कारण कपास की उत्पादकता बहुत अच्छी है। बठिंडा, मानसा, सिरसा, हिसार जैसे जिले कपास के लिए प्रसिद्ध हैं।
कपास की खेती के लिए भौगोलिक आवश्यकताएँ – Climatic and Soil Requirements for Cotton Farming
जलवायु और तापमान – Climate and Temperature
कपास को गर्म और शुष्क जलवायु (hot and dry climate) पसंद है। इसके लिए 21°C से 30°C तापमान आदर्श होता है और 600–1200 mm वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। अत्यधिक बारिश या ठंड फसल को नुकसान पहुँचा सकती है।
मिट्टी का प्रकार – Soil Type
काली मिट्टी (black soil) कपास के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है क्योंकि यह नमी को बनाए रखने में सक्षम होती है। इसके अलावा दोमट मिट्टी (loamy soil) और जल निकासी वाली बलुई मिट्टी (well-drained sandy loam) भी उपयुक्त होती हैं।
कपास की खेती का समय और फसलों का चक्र – Cotton Sowing and Harvesting Season
बीज बोने का सही समय – Ideal Time for Sowing
कपास की बुवाई सामान्यतः अप्रैल से जून के बीच की जाती है, जो मानसून की शुरुआत से मेल खाती है। क्षेत्र के अनुसार यह समय थोड़ा आगे-पीछे हो सकता है।
कटाई और उत्पादन का समय – Harvesting and Yield Time
कपास की कटाई अक्टूबर से दिसंबर के बीच होती है। जब कपास के बॉल (cotton bolls) पूरी तरह से सूखकर खुल जाते हैं, तभी कटाई की जाती है। समय पर कटाई से रेशा (fiber) की गुणवत्ता बनी रहती है।
कपास की उन्नत किस्में और बीज – Improved Cotton Varieties and Seeds
हाइब्रिड और बीटी कपास – Hybrid and BT Cotton
BT Cotton यानी Bacillus thuringiensis modified cotton ने किसानों को कीट नियंत्रण में जबरदस्त राहत दी है। यह विशेष रूप से ‘बॉलवॉर्म’ जैसे कीटों से पौधे की सुरक्षा करता है। Hybrid बीज अधिक उपज देने वाले होते हैं और रोग प्रतिरोधी भी होते हैं।
BT कपास के लाभ:
- कम कीटनाशक की आवश्यकता
- बेहतर फाइबर क्वालिटी
- रोग प्रतिरोधक क्षमता
- उच्च उत्पादन
हालाँकि, इसकी लागत अधिक होती है क्योंकि किसानों को हर वर्ष नया बीज खरीदना पड़ता है और प्राकृतिक जैव विविधता पर भी इसका असर पड़ सकता है।
देशी बीज के फायदे और नुकसान – Pros and Cons of Indigenous Seeds
देशी बीज जैसे ‘कपास 141’, ‘वरलक्ष्मी’ आदि पारंपरिक बीज हैं जो कम लागत में उपलब्ध होते हैं और प्राकृतिक रूप से कीट प्रतिरोधक होते हैं। हालांकि इनकी उपज BT या Hybrid बीजों से कम होती है।
देशी बीजों के फायदे:
- कम लागत
- जैविक खेती में उपयोगी
- मिट्टी की गुणवत्ता बनाए रखने में सहायक
कमियाँ:
- कम उत्पादन
- रोग प्रतिरोधक क्षमता सीमित
- बाजार में मांग कम
कृषि तकनीक और आधुनिक विधियाँ – Modern Farming Techniques in Cotton Cultivation

ड्रिप सिंचाई और फर्टिगेशन – Drip Irrigation & Fertigation
ड्रिप सिंचाई और फर्टिगेशन आधुनिक कपास खेती के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं। इससे पानी और खाद दोनों की खपत में भारी कमी आती है और फसल की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
लाभ:
- 50% तक जल की बचत
- नियंत्रित पोषण
- बेहतर उत्पादन
- खरपतवार कम
ऑर्गेनिक कपास की खेती – Organic Cotton Farming
जैविक कपास की मांग विश्वभर में तेजी से बढ़ रही है। इसमें कोई रासायनिक खाद, कीटनाशक या GM बीज का उपयोग नहीं होता। इसके लिए गोबर खाद, नीम तेल, वर्मी कम्पोस्ट आदि का प्रयोग किया जाता है।
हालांकि यह पारंपरिक खेती की तुलना में समय और मेहनत अधिक मांगती है, लेकिन बाजार में इसके दाम अधिक मिलते हैं, जिससे यह आर्थिक रूप से फायदेमंद है।
कपास की खेती में चुनौतियाँ – Challenges in Cotton Farming
कीट और रोग – Pests and Diseases
कपास की फसल ‘whitefly’, ‘bollworm’, और ‘aphids’ जैसे कीटों से बहुत प्रभावित होती है। इसके अलावा बैक्टीरियल ब्लाइट, लीफ कर्ल जैसे रोग भी होते हैं।
समाधान:
- IPM (Integrated Pest Management)
- ट्रैप क्रॉपिंग
- समय पर स्प्रे
- बायोपेस्टिसाइड्स का प्रयोग
जल संकट और मौसम का प्रभाव – Water Scarcity and Climate Impact
जलवायु परिवर्तन और अनियमित वर्षा कपास उत्पादन को बहुत प्रभावित करते हैं। अनावश्यक वर्षा से बॉल सड़ जाती है और सूखा उत्पादन को कम करता है।
इससे निपटने के लिए जल प्रबंधन तकनीकों और जलवायु-स्मार्ट कृषि की आवश्यकता है।
सरकारी योजनाएँ और समर्थन मूल्य – Government Schemes and MSP for Cotton
MSP और खरीद नीति – Minimum Support Price and Procurement
कपास का MSP हर साल भारत सरकार द्वारा घोषित किया जाता है। यह किसानों के लिए एक सुरक्षा कवच है। Cotton Corporation of India (CCI) इसका सीधा क्रय करती है।
2024–25 में मध्यम स्टेपल कपास के लिए MSP ₹6,620/क्विंटल और लंबी स्टेपल कपास के लिए ₹7,020/क्विंटल था।
कृषि विभाग और कृषि विज्ञान केंद्रों की भूमिका – Role of Agriculture Departments and KVKs
KVKs (Krishi Vigyan Kendras) किसानों को बीज, उन्नत तकनीक, कीट नियंत्रण, मिट्टी परीक्षण आदि में मार्गदर्शन देते हैं। योजनाएँ जैसे ‘PM-KISAN’, ‘ई-नाम’, और ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड’ किसानों की मदद करती हैं।
कपास खेती का आर्थिक महत्व – Economic Importance of Cotton Farming
किसानों की आय और रोजगार – Farmer’s Income and Employment
कपास भारत में लाखों लोगों के लिए आय और रोजगार का स्रोत है। इसकी प्रोसेसिंग से लेकर वस्त्र निर्माण तक बहुत बड़ा सप्लाई चेन जुड़ा हुआ है।
औद्योगिक विकास में योगदान – Contribution to Industrial Growth
भारत का वस्त्र उद्योग GDP का 4% और निर्यात का 11% कपास से प्राप्त करता है। स्पिनिंग मिल्स, वीविंग यूनिट्स, रेडीमेड कपड़े आदि सभी कपास पर निर्भर हैं।
कपास की प्रोसेसिंग प्रक्रिया – Cotton Processing
जिनिंग और प्रेसिंग – Ginning & Pressing
फसल कटाई के बाद कपास को गिन्निंग यूनिट में भेजा जाता है जहाँ से बीज और रेशा अलग किया जाता है। उसके बाद उसे बंडलों में प्रेस किया जाता है।
वस्त्र उद्योग में उपयोग – Use in Textile Industry
प्रेस्ड बंडलों को स्पिनिंग मिल्स में भेजा जाता है जहाँ से यार्न, फिर फैब्रिक और फिर वस्त्र तैयार किए जाते हैं।
भविष्य में कपास की खेती – Future of Cotton Farming
क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर – Climate-Smart Agriculture
जलवायु परिवर्तन के अनुसार खेती करने के लिए उन्नत किस्मों, स्मार्ट सिंचाई, और डेटा-ड्रिवन एग्रीकल्चर तकनीकों की जरूरत है।
नई तकनीकों का समावेश – Integration of New Technologies
AI, IoT, और मोबाइल ऐप्स के माध्यम से किसान अब मौसम की जानकारी, मिट्टी का विश्लेषण और कीट नियंत्रण की सलाह ले सकते हैं।
कपास खेती और पर्यावरण – Cotton Farming and Environment

जल प्रबंधन – Water Management
ड्रिप सिंचाई, मल्चिंग और वर्षा जल संचयन जैसी तकनीकों से जल की बचत की जा सकती है।
प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण – Conservation of Natural Resources
जैविक खेती, IPM और स्थानीय बीजों के उपयोग से पर्यावरण की रक्षा की जा सकती है।
किसानों की सफलता की कहानियाँ – Farmer Success Stories
गुजरात के स्मार्ट किसान – Smart Farmers of Gujarat
सौराष्ट्र के रवजी भाई ने ड्रिप सिंचाई और BT कपास के प्रयोग से प्रति एकड़ उत्पादन को दोगुना कर दिया और करोड़पति बन गए।
तेलंगाना की नारी शक्ति – Women Power from Telangana
वारंगल की लक्ष्मी देवी ने महिलाओं के समूह के साथ जैविक कपास का उत्पादन शुरू किया और अब उनकी यूनिट यूरोप में निर्यात करती है।
निष्कर्ष – Conclusion
कपास की खेती भारत के कृषि तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यदि इसमें आधुनिक तकनीक, सरकारी सहयोग, और किसान सशक्तिकरण को जोड़ा जाए तो यह और भी समृद्ध और लाभकारी बन सकती है।
यह फसल न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टि से भी भारत के लिए अनमोल है।
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