पुनर्योजी कृषि (Regenerative Agriculture) क्या है? 2025 में एक स्थायी खेती समाधान

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पुनर्योजी कृषि (Regenerative Agriculture) क्या है? – 2025 में एक स्थायी खेती समाधान


पुनर्योजी कृषि की परिभाषा और मूल सिद्धांत

पुनर्योजी कृषि एक ऐसी खेती प्रणाली है जिसका उद्देश्य केवल उत्पादन नहीं, बल्कि मिट्टी, जलवायु, जैव विविधता और मानव समुदायों के स्वास्थ्य को पुनः सशक्त बनाना है। यह पद्धति उस प्राकृतिक संतुलन को बहाल करती है जिसे पारंपरिक रसायन-आधारित खेती ने वर्षों में बिगाड़ दिया है।

पुनर्योजी कृषि बनाम पारंपरिक कृषि

तत्वपारंपरिक कृषिपुनर्योजी कृषि
उर्वरकरासायनिकजैविक, कम्पोस्ट
मृदा स्वास्थ्यघटता हैसुधार होता है
उत्पादनअल्पकालिक अधिकदीर्घकालिक स्थिर
पर्यावरण प्रभावनकारात्मकसकारात्मक

पारंपरिक कृषि में रासायनिक खाद और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग होता है, जिससे मृदा की उर्वरता, भूजल स्तर और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके विपरीत, पुनर्योजी कृषि मृदा में जीवन को बहाल करती है।

जैव विविधता और मृदा स्वास्थ्य का महत्व

स्वस्थ मृदा में अरबों सूक्ष्मजीव, कवक, और जैविक तत्व होते हैं जो पौधों की वृद्धि को प्राकृतिक रूप से प्रोत्साहित करते हैं। पुनर्योजी कृषि इन जीवों का संरक्षण करके एक संतुलित इकोसिस्टम तैयार करती है।


पुनर्योजी कृषि के इतिहास और उत्पत्ति

पारंपरिक आदिवासी ज्ञान

भारत सहित दुनिया भर में आदिवासी और पारंपरिक समुदाय सदियों से ऐसी कृषि पद्धतियाँ अपनाते आ रहे हैं जो प्रकृति के साथ समन्वय बनाकर चलती हैं। यह प्रणाली वास्तव में उनकी जीवनशैली में रची-बसी होती थी।

20वीं सदी में आधुनिक रूप

1980 के दशक में अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के कुछ कृषि वैज्ञानिकों ने पहली बार इस पद्धति को “Regenerative Agriculture” नाम दिया। इससे जुड़े प्रमुख व्यक्ति रॉबर्ट रोडेल और गेब ब्राउन जैसे किसान रहे।


पुनर्योजी कृषि के 7 मुख्य सिद्धांत

  1. मृदा की उर्वरता बहाल करना: जैविक खाद, वर्मीकम्पोस्ट, और फसल अपशिष्ट का प्रयोग।
  2. रासायनिक इनपुट में कमी: कीटनाशकों और उर्वरकों का न्यूनतम उपयोग।
  3. कवर क्रॉप्स का उपयोग: मिट्टी को ढकने के लिए पौधे जो क्षरण को रोकते हैं।
  4. पशुपालन के साथ समेकन: गोबर और पशु अपशिष्ट से पोषण।
  5. फसल चक्र परिवर्तन: विभिन्न फसलों का रोपण ताकि मिट्टी एकसमान न हो।
  6. न्यूनतम मिट्टी जुताई: मिट्टी की परतों को बिना बाधित किए खेती।
  7. जैविक पदार्थों की पुनः वापसी: सभी कार्बनिक अपशिष्टों को मिट्टी में लौटाना।

पुनर्योजी कृषि के प्रमुख लाभ

पुनर्योजी कृषि केवल मिट्टी या पर्यावरण को ही लाभ नहीं देती, बल्कि यह एक संपूर्ण पारिस्थितिक और आर्थिक सुधार की दिशा में भी कार्य करती है।

पर्यावरणीय लाभ

  • मिट्टी का कटाव कम होता है, जिससे नदियों और भूजल स्रोतों में गाद नहीं भरती।
  • कार्बन डायऑक्साइड का अवशोषण बढ़ता है, जो जलवायु परिवर्तन को रोकने में मदद करता है।
  • जैव विविधता में वृद्धि होती है – कीटों, पक्षियों और लाभकारी सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति बढ़ती है।

आर्थिक फायदे

  • किसानों को कम इनपुट लागत का सामना करना पड़ता है।
  • लंबे समय में उत्पादकता स्थिर रहती है और भूमि की उत्पादकता भी बढ़ती है।
  • पुनर्योजी उत्पादों के लिए विशेष बाजार और प्रीमियम मूल्य उपलब्ध होते हैं।

सामाजिक और सामुदायिक स्थायित्व

  • यह किसानों को आत्मनिर्भर बनाती है और रसायनों पर निर्भरता घटाती है।
  • ग्रामीण समुदायों में सामाजिक समरसता और सहयोग को बढ़ावा देती है।

मृदा स्वास्थ्य और कार्बन अवशोषण में भूमिका

मिट्टी में कार्बन संग्रहण

पुनर्योजी कृषि मृदा में जैविक कार्बन की मात्रा को बढ़ाकर उसे प्राकृतिक “कार्बन सिंक” में बदल देती है। इससे वातावरण में ग्रीनहाउस गैसें कम होती हैं।

प्रक्रियाकार्बन का योगदान
कम्पोस्टिंगजैविक अपशिष्ट से मिट्टी में कार्बन
कवर क्रॉप्सकार्बन कैप्चर को बढ़ावा
न्यूनतम जुताईमिट्टी की परतें सुरक्षित रहती हैं

जलवायु परिवर्तन की रोकथाम में भूमिका

IPCC की रिपोर्ट के अनुसार, यदि वैश्विक रूप से पुनर्योजी कृषि अपनाई जाए, तो यह CO₂ उत्सर्जन में महत्वपूर्ण कमी ला सकती है। यही कारण है कि कई जलवायु संगठनों ने इसे अपनाने की सिफारिश की है।


पुनर्योजी कृषि में उपयोग होने वाली तकनीकें

एग्रोफॉरेस्ट्री (Agroforestry)

  • कृषि भूमि में पेड़ों और फसलों का संयोजन
  • जल संरक्षण, छाया और जैव विविधता बढ़ती है

मल्चिंग और कम्पोस्टिंग

  • मल्चिंग से मिट्टी की नमी संरक्षित रहती है
  • कम्पोस्टिंग से प्राकृतिक पोषण मिट्टी में वापस लौटता है

ड्रिप इरिगेशन और जल संरक्षण

  • जल की बूँद-बूँद सिंचाई तकनीक
  • जल की 30-50% तक बचत संभव

भारत में पुनर्योजी कृषि की स्थिति

नीति और योजनाएं

भारत सरकार ने 2020 के बाद से राष्ट्रीय जैविक मिशन (MOVCDNER) और परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के अंतर्गत पुनर्योजी कृषि को प्रोत्साहन देना शुरू किया है।

सफल किसानों के उदाहरण

  • आंध्र प्रदेश के जीवी रमेश ने 25 एकड़ भूमि में पुनर्योजी तकनीकों का उपयोग कर मृदा उर्वरता 60% तक बढ़ाई।
  • मध्य प्रदेश के बबलू भैया की फार्मिंग मॉडल को UNDP ने प्रशंसा दी है।

पुनर्योजी कृषि बनाम जैविक कृषि

पहलूजैविक कृषिपुनर्योजी कृषि
दृष्टिकोणरसायनों का त्यागपारिस्थितिकी को पुनः सशक्त करना
परिणामस्वास्थ्यप्रद फसलेंसम्पूर्ण पर्यावरण सुधार
प्रक्रियाप्रमाणन-केंद्रितसिद्धांत-आधारित

पुनर्योजी कृषि, जैविक कृषि से एक कदम आगे है क्योंकि इसका उद्देश्य पुनरुद्धार (regeneration) है न कि केवल रसायन-मुक्त खेती


किसानों के लिए पुनर्योजी कृषि अपनाने के व्यावहारिक तरीके

प्रारंभिक कदम

  • मृदा परीक्षण कराएं
  • कवर क्रॉप्स लगाना शुरू करें
  • रासायनिक खाद की जगह जैविक कम्पोस्ट का उपयोग

प्रशिक्षण और सहायता

  • कृषि विज्ञान केंद्र (KVK), ICAR संस्थान, और NGOs द्वारा प्रशिक्षण सुलभ है
  • YouTube और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर अनेक प्रशिक्षण वीडियो उपलब्ध

चुनौतियाँ और सीमाएं

प्रारंभिक लागत

शुरुआत में मशीनों, प्रशिक्षण और बदलाव में लागत आती है, लेकिन यह निवेश दीर्घकालिक होता है।

जागरूकता की कमी

ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी कई किसान इस पद्धति से अनजान हैं।

बाजार की अनिश्चितता

विशेष पुनर्योजी उत्पादों के लिए स्थिर मांग और आपूर्ति श्रृंखला विकसित होनी अभी शेष है।


भविष्य की संभावनाएं और वैश्विक रुझान

  • अमेरिका, यूरोप, और अफ्रीका में पुनर्योजी प्रमाणन सिस्टम विकसित हो रहा है
  • कार्बन क्रेडिट बाजार में पुनर्योजी किसानों को लाभ मिल रहा है

FAQs: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल


निष्कर्ष: सतत भविष्य की दिशा में एक कदम

पुनर्योजी कृषि न केवल खेती का एक तरीका है, बल्कि यह एक जीवनशैली और प्रकृति के साथ तालमेल की प्रक्रिया है। जलवायु संकट, मृदा क्षरण और बढ़ती जनसंख्या के बीच यही पद्धति भविष्य की खेती का मजबूत आधार बन सकती है। यदि सरकार, किसान और उपभोक्ता मिलकर कार्य करें, तो पुनर्योजी कृषि एक हरित क्रांति 2.0 बन सकती है।


🌿 बाहरी लिंक:
जानें अधिक Rodale Institute on Regenerative Agriculture

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